श्री भरत मंदिर इण्टरमीडिएट कालेज,ऋषिकेश के संस्थापक स्वर्गीय महन्त परशुराम जी महाराज का जन्म भगवान विष्णु नारायण की पावन नगरी ऋषिकेश में दिनांक 22 अप्रैल सन् 1891 ई0 में मंगलवार के दिन हुआ था। महन्त श्री परशुराम जी के पिता महन्त श्री रामरत्न दास जी महाराज का जब सन् 1906 में स्वर्गवास हुआ तब महन्त परशुराम जी की आयु मात्र 15 वर्ष थी। बाल्यावस्था में ही श्री भरत मंदिर की गद्दी का गुरूत्तर भार इन पर आ पड़ा। घर पर ही इन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी एवं फारसी का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया। बाल्यावस्था से ही कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए उनकी प्रतिभा प्रस्फुठित होती गयी।
हृषीकेश के विकास की आधारशिला महंत श्री परशुराम जी महाराज द्वारा ही स्थापित की गई। सन् 1910 में शासन एवं श्री 108 बाबा काली कमली के सहयोग से उन्होंने हृषीकेश सुधार कमेटी का गठन किया। नवम्बर 1922 को नगर के लिए नोटिफाईड एरिया कमेटी बनाई गयी जिसके प्रथम अध्यक्ष महंत श्री परशुराम जी महाराज को बनाया गया । उन्होंने 19 नवम्बर 1925 तक इस पद को सुशोभित किया।
हृषीकेश क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा के जन्मदाता - सन् 1940 में वर्तमान थाने के सम्मुख स्थित बालक पाठशाला नं0 1 का उद्घाटन करते हुए हृषीकेश नगर के लिए चिकित्सालय एवं विद्यालय की परम आवश्यकता को स्वीकार कर दोनों कार्यों को सम्पन्न कराने का वचन मंहत श्री परशुराम जी महाराज ने दिया। इस कार्य हेतु उन्होंने निःशुल्क 7 बीघा भूमि प्रदान की। इस भूमि पर वर्तमान में अवस्थित पं0 शान्ति प्रपन्न शर्मा राजकीय चिकित्सालय एवं महिला चिकित्सालय के रूप में नगरवासियों की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण क्षेत्र की सेवा में समर्पित है। सन् 1942 में परमपूज्य महन्त श्री परशुराम जी महाराज के द्वारा श्री भरत मंदिर स्कूल सोसायटी का गठन किया गया जिसे 1943 में पंजीकृत किया गया। वर्तमान में सोसायटी के अंतर्गत श्री भरत मंदिर संस्कृत महाविद्यालय,ऋषिकेश, श्री भरत मंदिर इण्टर कालेज,ऋषिकेश, ज्योति विशेष विद्यालय तथा श्री भरत मंदिर पब्लिक स्कूल,ऋषिकेश संचालित हो रहे हैं।
सन् 1941-42 में महंत श्री परशु राम जी महाराज ने श्री भरत मंदिर परिसर में ही विद्यालय स्थापित किया जो पहले प्राथमिक रहा तथा कालांतर में सन् 1943 में श्री भरत मंदिर आंग्ल हिंदी माध्यमिक विद्यालय के रूप में पंजीकृत कर दिया गया। शासन द्वारा इस विद्यालय को 1944 में कक्षा 8 तक स्थायी मान्यता प्रदान की गई। महंत जी के अथक प्रयास से ही विद्यालय को सन् 1947 में हाईस्कूल एवं 1951 में इण्टरमीडिएट की मान्यता प्राप्त हुई। वर्ष 1945-46 में मंहत जी ने विद्यालय के लिए 167 बीघा भूमि प्रदान कर सन् 1956 में अपने हाथों से नींव रखी जो आज भी यश शरीर के रूप में विद्यमान है। विद्यालय की नींव रखने के साथ ही यशस्वी महंत जी का विचार विस्तृत भवन एवं सभागार निर्माण का था जिसे उनके उत्तरवर्ती मंहत श्री अशोक प्रपन्न जी महाराज तथा विद्यालय के वर्तमान प्रबन्धक श्री हर्षवर्द्धन शर्मा जी ने पूर्ण किया।
"संसार में स्वंय के लिए सभी जीते हैं परन्तु जो परोपकार के लिए जीता है समाज में उसी का सच्चा जीना है।"